Property New Rule 2025: 75 लाख की जमीन, बेटी को मिलेगा या नहीं, जानिए सच

By: Agnibho Bhagat

On: Tuesday, September 30, 2025 10:33 AM

Property New Rule 2025

भारत में संपत्ति का बंटवारा और बेटियों का उस पर अधिकार सामाजिक और कानूनी दृष्टि से एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। परंपरागत रूप से हमारी सोच में यह रहा है कि पिता की संपत्ति या जमीन बेटों में ही बांटी जाएगी। लेकिन समय के साथ कानूनों में बदलाव आया है जिसमें बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है। हालांकि इस मामले में कई नियम और शर्तें लागू होती हैं, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है। खासकर जब बात बाप की जमीन की हो तो यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या बेटी को इसका हक मिलेगा या नहीं।

इस लेख में विस्तार से बताया जाएगा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटी को किस प्रकार का अधिकार मिलता है, नया कानून क्या कहता है, और कोर्ट के हालिया फैसलों का इस पर क्या प्रभाव पड़ा है। साथ ही यह भी समझा जाएगा कि कौन-कौन से कारणों से बेटी को संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है या नहीं।

Property New Rule 2025

सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि संपत्ति पर दो तरह के अधिकार होते हैं – पैतृक (ancestral) और स्वअर्जित (self-acquired)। पैतृक संपत्ति वह होती है जो पूर्वजों से मिली हो, जैसे दादा-दादी से पिता के पास आई हो। इस संपत्ति में सभी संतानों का जन्म से ही बराबर अधिकार होता है, चाहे वह बेटा हो या बेटी। इस पर पिता का कोई अलग अधिकार नहीं होता कि वे पैतृक संपत्ति को केवल बेटे के नाम कर दें या बेटी को बाहर कर दें।

दूसरी तरफ स्वअर्जित संपत्ति वह होती है जो पिता ने अपनी मेहनत या पैसे से खुद बनाई या खरीदी हो। इस तरह की संपत्ति पर पिता का पूरा नियंत्रण होता है कि वे इसे किसे देंगे। वे वसीयत (Will) के जरिए अपनी संपत्ति केवल बेटे को दे सकते हैं, या बेटी को भी दे सकते हैं। इसमें बेटी का अधिकार तब तक नहीं होता जब तक पिता ने वसीयत में कुछ न लिखा हो।

साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक बड़ा संशोधन हुआ, जिसमें बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर हिस्से का हक दिया गया। इसका मतलब है कि अगर पिता की मृत्यु वसीयत बनाए बिना हो जाती है, तो बेटे-बेटी दोनों को समान हिस्सा मिलेगा।

इस कानून के तहत बेटी शादीशुदा हो या न हो, दोनों ही मामलों में उसे बराबर अधिकार मिलता है। साथ ही अगर पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति का बंटवारा वसीयत के बिना होता है, तो बेटी का हिस्सा भी निश्चित होगा।

पैतृक संपत्ति में बेटी का अधिकार

पैतृक संपत्ति वह होती है जो पूर्वजों से मिली हो और पिता के पास आई हो। इस संपत्ति में सभी बच्चों को बराबर अधिकार होता है। यह हक पिता के जीवित रहने या मरने पर निर्भर नहीं करता। पिता इस संपत्ति को अपने मनमुताबिक किसी एक उत्तराधिकारी को नहीं दे सकते।

कोर्ट ने भी कई फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि बेटी को पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा। चाहे बेटी की शादी हो चुकी हो या तलाकशुदा हो, उसका भी पैतृक संपत्ति में पूरा अधिकार होता है। यदि पिता ने अपनी पैतृक संपत्ति को केवल बेटे के नाम करवा दिया हो, तब भी बिना वसीयत ये कब्जा वैध नहीं माना जाएगा।

यह नियम सामाजिक समानता और बेटियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी माना गया है। क्योंकि यह बेटियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है एवं पारिवारिक संपत्ति विवाद को कम करता है।

स्वअर्जित संपत्ति और वसीयत का महत्व

स्वअर्जित संपत्ति पर पिता का पूर्ण अधिकार होता है। यदि पिता ने अपनी कमाई से जमीन, मकान या अन्य कोई संपत्ति खरीदी है तो वह उसे किसी भी व्यक्ति को दे सकते हैं। इस संपत्ति पर वसीयत का पालन होता है।

अगर पिता ने वसीयत बनाई है और उसमें स्पष्ट रूप से लिखा है कि संपत्ति की हिस्सेदारी केवल बेटे को मिलेगी, तो ऐसी स्थिति में बेटी को उस संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा। इसलिए संपत्ति के बंटवारे में वसीयत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।

हालांकि कानून यह भी मानता है कि बिना वसीयत अगर पिता की मृत्यु हो जाती है तो संपत्ति का बंटवारा बेटों और बेटियों में बराबर होगा, भले ही वह स्वअर्जित संपत्ति क्यों न हो।

तलाकशुदा, दूसरी शादी या आपत्तिजनक स्थिति में बेटियों का अधिकार

बेटियों का अधिकार केवल परिवार की पारंपरिक स्थिति पर निर्भर नहीं करता। अगर बेटी तलाकशुदा है या पिता ने दूसरी शादी की है, तब भी बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलता है। जितनी भी संतानें हैं वे सभी क्लास 1 वारिस मानी जाती हैं और उन्हें बराबर का हिस्सा देने का प्रावधान है।

इसके अलावा, यदि पिता वसीयत नहीं छोड़ते और मृत्युपरांत संपत्ति का विवाद हो तो कोर्ट में बेटियों का हक़ सुनिश्चित किया जाता है।

निष्कर्ष

नए नियमों और 2005 के संशोधन के अनुसार, बाप की जमीन बेटी को मिलेगा या नहीं इसका जवाब है कि बेटी को पिता की संपत्ति में बराबर हक़ होता है। खासकर पैतृक संपत्ति में बेटी का जन्म के साथ ही अधिकार तय हो जाता है और स्वअर्जित संपत्ति में बिना वसीयत के बंटवारे पर भी बेटियों का हिस्सा निश्चित होता है।

यह कानून बेटियों के अधिकारों की रक्षा करता है और संपत्ति विवाद को कम करता है। इसलिए बेटियों को परिवार में बराबरी का दर्जा देना जरूरी है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और आर्थिक रूप से मजबूत हों।

इस प्रकार, बाप की जमीन बेटी को मिलने वाला हक़ अब कानूनन सुरक्षित है। यदि कोई संपत्ति विवाद हो तो उचित कानूनी सलाह लेकर कोर्ट से न्याय पाया जा सकता है।

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